है बस्ती ख्वाब में
घर मेरा |
तुझे मुझसे
क्या, मुझे तुझसे
क्या ||
में बस
जज़्बात पे हस्ता हूँ |
फिर दर्द
क्या, और घाव क्या
||
राही मन , तर हो लगन |
चलता बस अपनी धुन
मगन ||
मुझे धूपं क्या और
छाँव क्या |
फिर अब रुकने का
चाव क्या ||
बज़्म-ऐ-इश्क में
तान मेरी |
मेरे गीत क्या, मेरे भाव क्या ||
में बस मुस्कान पे
मरता हूँ |
अब भीड़ क्या, पथराव क्या ||